यूपी में मजलिस को रोकने के लिए सारे हरबे इस्तेमाल किये जा रहे हैं चाहे वो किसी भी तरह का हरबा हो।
8 फ़रवरी को बीकापुर से MIM कैंडिडेट जुबेर अहमद जब अपना नामांकन कराने के लिए पर्चा दाखिल करने गए तो वकील ने व्हाइटनर लगा हुआ पर्चा दाखिल करवा दिया ये जानते हुए भी की पर्चे में किसी भी तरह की छेड़ छाड़ के बाद उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है।
वहा बैठे एक अधिकारी ने बताया की नामांकन कराना है दूसरा पर्चा लाना पड़ेगा। वरना फिर निर्दलीय लड़ना पड़ेगा।
पर्चे पर चूँकि पार्टी अध्यक्ष का दस्तखत होता है और पर्चा हैदराबाद में था। असद ओवैसी वैसे ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव को लेकर बिजी हैं तो सबको फ़िक्र होने लगी की अब क्या होगा।
खैर पर्चा हैदराबाद से लखनऊ बाय प्लेन 6 घण्टे में आ गया और जुबेर अहमद का नामांकन भी हो गया पर सवाल ये उठता है की आखिर असद ओवैसी और उनकी पार्टी से किसी को नफरत क्यू है। उन्हें भी चुनाव लड़ने का उतना ही हक है जितना बाकि सियासी पार्टियों का फिर इस तरह का बर्ताव क्यू??
क्या सो कॉल्ड सेक्युलर नेताओं ने आपस में तय कर लिया है की मुसलमानों को सियासी हिस्सेदारी नही देनी है बल्कि सिर्फ वोट लेते रहना है उनसे?
खौर जुबेर साहब का नामांकन हो चूका है और वो MIM के टिकट पर ही चुनाव लड़ेंगे।
Friday, 10 February 2017
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बीकापुर से MIM प्रत्याशी जुबेर अहमद को चुनाव नही लड़ने देने की साजिश हुयी नाकाम
बीकापुर से MIM प्रत्याशी जुबेर अहमद को चुनाव नही लड़ने देने की साजिश हुयी नाकाम
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