भारत एक सेक्युलर- लोकतान्त्रिक देश है. जहाँ धर्म, जाति, लिंग इत्यादि पर आधारित कोई भेदभाव नहीं है. यह एक संवैधानिक बात है. लेकिन, एक सेक्युलर और लोकतान्त्रिक देश के सही रूप को देखना है तो दूसरे पहलू पर ध्यान दीजिए. भारत के सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित राज्यों को मिलाकर कुल 4120 विधानसभा सीट है. जिसमे 2872 सामान्य सीट है, 607 सीट अनुसूचित जातियों और 554 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यानि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 607 सीट पर मुसलमान चुनाव नहीं लड़ सकता है. जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 554 सीट पर भी कुछ सीट पर छोड़कर कही से मुसलमान चुनाव नहीं लड़ सकता. अर्थात 1161 यानि लगभग 28 प्रतिशत विधानसभा सीट से मुसलमानों को पहले ही वंचित कर दिया गया है. जब्कि, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से हिन्दू धर्म से ही जुड़ाव है. इस प्रकार हिन्दू समुदाय का प्रतिनिधित्व सभी 4120 सीटों पर है जबकि मुसलमानों का मात्र 2872 सीटों पर. एक लोकतान्त्रिक और सेक्युलर देश में 28 प्रतिशत सीट से किसी एक समुदाय को दूर रखना लोकतंत्र के लिए घातक है. अपनी क़यादत और सेक्युलरिज्म के सभी पुरोधा को चाहिये कि उस 28 प्रतिशत सीट पर भी मुसलमानों की प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिये आवाज़ उठाये. इसका सबसे आसान तरीक़ा पसमांदा की कुछ बिरादरियों को अनुसूचित जाति में शामिल करके किया जा सकता है. जब उन 28 प्रतिशत सीट पर पसमांदा का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तो ख़ुद-ब-खुद मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा.
इसी तरह 543 लोकसभा सीटो मे से 131 सीटे भी आरक्षित है ..यानि मुसलमान केवल 412 सीट पर ही चुनाव लड़ सकता है. ..

ऐसा तब तक नहीं किया जा सकता जब तक Article 341 में अमेंडमेंट नहीं करते जो ये कहता है कि अनुसूचित में केवल 3 मजहब (#हिन्दू #बौद्ध #सिख ) के लोग हो सकते है। लेकिन आंध्रप्रदेश हाइकोर्ट ने #मुस्लिम आरक्षण जो कांग्रेस ने दिया था उस पर यही दलील देकर रोक लगायी थी की मजहब के आधार पर आरक्षण नहीं मिल सकता और ये हमारे कॉन्स्टिट्यूशन के खिलाफ है। तो बुद्धिजीवी वर्ग ये बताये की मजहब के आधार पे मुस्लिमो को रोकते हो और फिर मजहब के आधार पर ही अनुसूचित जाति को आरक्षण कैसे दे सकते हो। #सच्चर कमेटी ने भी इस आर्टिकल में अमेंडमेंट करने को कहा लेकिन कांग्रेस ने नहीं किया।
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