हां हम लोग ही अपनी बदहाली के जिम्मेदार है-
हमने डा. मसूद (नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी) का साथ इसलिए नहीं दिया क्योंकि सेकुलरिज्म को नुकसान पहुंचेगा और साम्प्रदायिक ताकतें सत्ता में आ जाएगी. हमने नईमुल्ला अंसारी (मोमिन कांफ्रेंस) को इसलिए दुत्कार दिया क्योंकि हमें दूर के ढोल सुनने की आदत पड़ गई है. हमने डा. अयूब (पीस पार्टी) का साथ बीच में सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि हमें तथाकथित सेकुलर सपा सरकार में दलाली का मौका चाहिए था. AIUDF, Welfare Party, SDPI का हमे तो नाम ही नहीं पता. आज जब मौका है इत्तेहाद कायम करने का तो हम मजलिस सदर को भाजपा का एजेंट और कौम का दलाल साबित करने मे पूरा जी जान लगा चुके है. एक बात गौर से सुन लीजिए अगर 67 कायर मिलकर भी मुजफ्फर नगर, दादरी और जियाउल हक के परिवार को इंसाफ नहीं दिला पाए तो ये अगर 100 भी हो जाए तो इनके रगों में गुलामी का ही खून दौड़ेगा. किसी भरम में ना रहें कि ये लोग कुछ भी कौम का भला करेंगे. 18% रिजर्वेशन की बात तो छोड़ दीजिए अगर इन्हे मौका मिले तो समाजवादी पेंशन और मनरेगा में दलाली नहीं छोड़ेंगे. अभी थोड़ा वक्त बचा है सोच समझ कर फैसला लीजिए और मजलिस को कामयाब बनाईये. मजलिस का जलवा तेलंगाना की आवाम से पूछीए जहां सिर्फ 7 है और महाराष्ट्र की आवाम से जायजा लीजिए जहां सिर्फ 2 है. बात तादाद की नहीं बल्कि हौसले की है अगर यूपी एसेंबली मे दो-चार मजलिसिये भी पहुंच गए तो सरकार के फर्जी मुस्लिम लालीपाप का जो ड्रामा है उसकी बैंड बजा देंगे. संभल जाईये की अभी सिर्फ 70 साल हुए है कहीं ऐसा ना हो कि अगले 70 साल भी सेकुलरिज्म के कूली हमी बन कर रहे. भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर की सामाजिक चेतना और बैरिस्टर असदुद्दीन औवैसी के लोकतांत्रिक संघर्ष को अपने किरदार में उतार लीजिए ताकि जुल्म के खिलाफ लड़ने की हिम्मत मिले.
जय भीम - जय मीम
हैरत ज़दा खड़ा हूँ, मैं मेयार देख कर
कद नप रहे हैं, दरहम-ओ-दीनार देख कर
Ali Zakir
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