उत्तर प्रदेश की सियासत के शिकार हुए मुसलमान..
उत्तर प्रदेश की दो सियासी पार्टियां अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और दूसरी मायावती की बसपा जो खुद को सेकुलर कहती है और मुसलमानों का हमदर्द होने का दावा करती हैं।लेकिन इन दोनों पार्टयों ने सेकुलरिज़्म के नाम पर हमेशा मुसलमानों के साथ धोखा कीया और मुसलमानों की वफ़ादारी का सिला कभी मुज़फ्फरनगर,दादरी सानेहा तो कभी बिजनौर सानेहा की शक्ल में दिया कभी 18% रिज़र्वेशन का वादा किया तो दूसरी तरफ रिज़र्वेशन देने से साफ़ इंकार किया और मरहूम जियाउलहक के क़ातिल को रियासत का वज़ीर बनाया तो मुख़्तार अंसारी को गुंडा कहकर उनको दरकिनार किया।
क्या मुख़्तार अंसारी को दरकिनार करने की वजह ये नहीं है कि वो मुसलमान हैं?
अगर नहीं तो राजा भइया जैसा दहशतगर्द रियासत का वज़ीर कैसे?
लेकिन फिर भी हमारी क़ौम आँखे नहीं खोलती..... वजह? इन दोनों पार्टियों ने हमेशा से मुसलमानों को ख़ौफ़ज़दा किया कभी आरएसएस से तो कभी बीजेपी और उसकी दहशतगर्द तंजीमों से और मुसलमानों की ये डर आज कमज़ोरी बन गई है।
कभी मायावती मुसलमानों को गद्दार कहती हैं तो कभी कट्टरपंथी कहती कभी मुसलमानों को बीजेपी का ख़ौफ़ दिखाती है तो कभी खुद गुजरात की रियासती इंतखाब में शमूलियत करती है और बीजेपी की हिमायत में वोट करने की इल्तिज़ा करती हैं जिस लोमड़ी मायावाती ने बीजेपी जैसे कम्युनल पार्टी के साथ मिलकर रियासत पर हुकूमत की आज वही लोमड़ी मुसलमानों को बीजेपी का खौफ दिखा रही है अफ़सोस की मुसलमानों की आँख पे लगी काली पट्टी नहीं हटती या खुद हटाकर हक़ीक़त का इक़रार करना नहीं चाहते? इन दोनों पार्टियों ने मुसलमानों को इस क़दर अपने मकरो फ़रेब की जाल में फंसा लिया है की मुसलमानों को मुज़फ्फर नगर में हुआ क़त्लेआम,माँ बहनो के साथ हुई आबरूरेज़ी,उनकी शर्मगाहों को ज़ख़्मी करना,बच्चों का यतीम होना,नौजवानों की ज़िन्दगियाँ बर्बाद होना,माँ बहनों का बेवा होना तक नहीं दिखता अफ़सोस की मुसलमान क़ौम सिर्फ मायावती और अखिलेश जैसे कम्युनल ज़हनियत वालों को अपना रहनुमा मानकर रियासत की गद्दी पे बैठाना जानती हैं उनका गिरेबान पकड़कर अपना हक लेना नहीं जानती हैं।
मुसलमानों ने माँगा ही क्या इस रियासती हुकूमत से सिर्फ अपनी हिफ़ाज़त लेकिन बदले में मिला क्या जिस दहशतगर्द ने इख़लाक़ मरहूम को शहीद किया उन्हें नौकरियां और 20 लाख रूपए दी इस कम्युनल हुकूमत ने क्या यही मुसलमानों की हिफाज़त है? क्या इसीलिए मुसलमानो ने तुम्हे इक़्तेदार की गद्दी पर बैठाया था?
और कितने ज़ुल्म का पहाड़ तोड़ोगे ये सिसकियाँ ये आहो पुकार ये बेवाओं की बद्दुआएं ये यतीमों की हुरमत तुम्हे बर्बाद कर देगी याद रखो तुम्हे भी मरना है और पाई पाई का हिसाब देना है।
लेख पर किसी भी विवाद के लिए या आपत्ति के लिए शाहनवाज़ अंसारी पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं...
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