माफ करना दोस्तों ! लोकतंत्र का लिबास चारों तरफ से इतना फट चुका है कि मीडिया हो, न्यायपालिका हो, कार्यपालिका हो या विधायिका हो सब तरफ से खाकी चड्डी अब साफ नज़र आने लगी है । इसलिए अब मैं इस पर और ज्यादा सेकुलरिज्म का पर्दा नहीं डाल सकता ।
चलिए माना कि आप बहुत मुखलिस इंसान हैं, आप बिल्कुल सच्चे सेक्युलर हैं मगर आप पूरी दुनिया तो नहीं है न........ आप जैसे दो-चार लोग जो अच्छे हैं वे इसे निजाम को बदल तो नहीं सकते न.... वह मुझ पर चलने वाली गोली अपने सीने पर तो नहीं ले सकते न.... वह मेरे दर्द को महसूस तो कर सकते हैं मगर मेरे दर्द को झेल तो नहीं सकते न...... फिर ऐसे में आपका सेकुलरिज्म ओढ़ूँ या बिछाऊँ, क्या करुं इसका ?
क्या आप अदालत के फैसले बदलवा सकते हैं, क्या आप कार्यपालिका सुधार सकते हैं, क्या आप विधायिका में बैठकर संशोधन कर सकते हैं, क्या आप पत्रकारिता में जाकर सच बोल सकते हैं .... नहीं कर सकते न... क्योंकि वही हाल आपका भी होगा जो हमारा होता है । इसलिए आपसे गुजारिश है कि अब आप रहें या लिस्ट से चले जाएं मगर अब हमें सहिष्णुता का, भाईचारे का, मोहब्बत का पाठ न पढ़ाएं । आप जैसे चंद लोगों की बातों में आकर हमने 70 सालों में बहुत कुछ खोया है अब हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए क्योंकि अब आपका सेकुलरिज्म, आपकी मोहब्बत, आपका भाईचारा यह सब एक ट्रैप लगने लगा है, नहीं होता हमें आप पर विश्वास । इसलिए जाइए सबसे पहले चीजों को दुरुस्त कीजिए, जो विश्वास हमने खोया है उसे बहाल कीजिए फिर आइए हमें मोहब्बत का पाठ पढ़ाइए वरना मरना ही है तो हमें लड़कर मरने दीजिए सेकुलरिज्म के धोखे में रखकर मत मरवाईए ।
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ReplyDeleteHaq baat
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