ईंट का तकिया बना कर ज़मीन पर सोने वाले अरब के खलीफा की गरीबो के प्रति उदारता का हैरत अंगेज़ वाकिया... - Hakeem Danish

Wednesday, 18 January 2017

ईंट का तकिया बना कर ज़मीन पर सोने वाले अरब के खलीफा की गरीबो के प्रति उदारता का हैरत अंगेज़ वाकिया...


Naeem Akhtar लिखते हैं की...
पुराना कुर्ता---

इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो की उम्र बहुत कम थी एक दिन एक चिड़िया से खेल रहे थे कि वह उड़कर मस्जिद नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मैं चली गई , इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो उसके पीछे भागे और भागते भागते मस्जिद में दाखिल हो गए कुर्ता जरा फटा हुआ था देखा एक बड़े वजीहा बुजुर्ग मस्जिद में एक-कोने में ईंट का तकिया बनाकर सो रहे थे मासूम बच्चे की निगाह जब उन पर पड़ी तो उनकी वजाहतऔर हूस्नो  जमाल को देख कर मबहूत हो गया उनके पास खड़ा हो गया और ताज्जुब से उंहें देखने लगा बच्चे की जो आहट हुई तो बुजुर्ग ने आंखें खोल दी और पूछा ऐ बच्चे तुम कौन हो किसके बेटे हो  और इस वक्त मस्जिद में क्या कर रहे हो इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो ने निहायत मासूमियत से बुजुर्ग को सारी बातें बतला दिन और यह भी बदला दिया कि हजरत इस वक्त तो मैं अपनी चिड़िया को पकड़ने की नियत से आया था बुजुर्ग ने बच्चे को अपने पास बुलाया बुला कर बैठा लिया और करीब ही एक आदमी  सो रहा था उसका नाम ले ले कर पुकारने लगे मगर वह अल्लाह का बंदा बिल्कुल ही गाफिल सो रहा था बुजुर्ग ने इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो से फरमाया कि बच्चे जरा करीब जाकर उस आदमी को जगाओ जब इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो  ने उस आदमी को जगाया तो बुजुर्ग ने उसे करीब बुलाकर उसके कान में कुछ कहा और वह आदमी चला गया इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो भी जाने के लिए खड़े हुए तो बुजुर्ग ने फरमाया तुम अभी ना जाओ मुझे तुमसे कुछ काम है मेरे पास ही बैठे रहो इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो  का बयान है कि उनके चेहरे में ऐसी कशिश और लहजे में ऐसी मिठास थी और तर्ज़े गुफ्तगू में इतनी शीरनी थी की  मैं चाह कर भी इंकार न कर सका थोड़ी देर में देखा कि वही आदमी एक निहायत कीमती और खूबसूरत कुर्ता लेकर आया बुजुर्ग ने वह कुर्ता लिया मेरा कुरता उतरवा दिया और वह कुर्ता मुझे पहना दिया मेरा पुराना कुर्ता मेरे हाथ में थमाया और जब मैं चलने लगा तो मेरे कुर्ते की जेब में 1000 दिरहम की थैली डाल दी फरमाया अब अपने घर जा सकते हो मुझे ऐसा लगा जैसे कि मैं कोई ख्वाब देख रहा हूं निहायत खूबसूरत कुर्ता जो मेरे बदन पर था और जेब में दिरहमों से भरी हुई थैली घर में आया तो सीधे अपने वालिद के पास गया और जेब से थैली निकालकर उनके सामने रख दी
वालिद ने माजरा पुछा तो सारी कहानी शुरू से आखिर तक सुना डाली मेरे वालिद सोच में पड़ गए तुम उंन्हें जानते हो मैंने कहा नहीं मैं नहीं जानता ,बाबा आदमी बड़े खूबसूरत है वह्  मामूली कपड़े उनके बदन पर थे मस्जिद-ए-नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के एक कोने में एक ईंट सर  के नीचे रख के सो रहे थे उनके मुंह से बातें ऐसे निकल रही थी जैसे कि फूल झड़ रहे हो यह सब सुनकर इब्न सईद रजिअल्लाहो अन्हो  के वालिद के चेहरे पर मुस्कुराहट  आगयी और फरमाया बेटे मैं समझ गया वह कौन थे वह खलीफा -ए- वक़्क्त      जुन्नवरीन हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजिअल्लाहो अन्हो थे गरीबों के निगहबान ,शमा की तरह दोसरों के लिए जलने वाले,____◆

खैर-ए-मोजस्सम, सखी, और गनी,

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