पुलिस में मुसलमानों के लिए जगह क्यूँ नही जवाब दे कांग्रेस सपा बसपा व अन्य पार्टियाँ - Hakeem Danish

Monday 8 May 2017

पुलिस में मुसलमानों के लिए जगह क्यूँ नही जवाब दे कांग्रेस सपा बसपा व अन्य पार्टियाँ

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महाराष्ट्र प्रदेश बनने के बाद से अब तक
सिर्फ साढ़े चार साल शिवसेना और बीजेपी की मिली
जुली सरकार रही है।अब भी भाजपा शिव सेना की है इसके बावजूद महाराष्ट्र पुलिस में
मुसलमानों की नुमाइंदगी सिर्फ एक फीसद है। दिल्ली में
कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार मुसलसल अपना
तीसरा टर्म पूरा की अब केजरीवाल हैं इसके बावजूद दिल्ली
पुलिस में मुस्लिम नुमाइंदगी सिर्फ पौने दो फीसद है।
पुलिस में मुसलमानों की भर्ती ना होने के लिए
जिम्मेदार कौन है, फिरकापरस्त ताकतें या #कांग्रेस?
यह सवाल अब हर तरफ बड़ी शिद्दत से पूछा जा रहा है
लेकिन इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नहीं है।
नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्योरो ने जो आदाद ओ शुमार
(आंकड़े) पेश किए हैं उसके मुताबिक जम्मू कश्मीर और
आंध्रा प्रदेश को अलग कर दिया जाए तो भारत
में जितने पुलिस वाले हैं उनमें मुसलमानों की नुमाइंदगी
तीन फीसद से भी कम है। जम्मू कश्मीर पुलिस में साठ
फीसद और आंध्रा प्रदेश पुलिस में दस फीसद मुसलमान हैं।
उत्तर प्रदेश जहां पिछले तेइस सालों से घूम फिर कर
बहुजन समाज पार्टी और मुलायम सिंह की समाजवादी
पार्टी की सरकारें रही हैं वहां भी पुलिस में मुस्लिम
नुमाइंदगी पौने पांच फीसद ही है। जम्मू कश्मीर पुलिस
में साठ फीसद मुसलमान और आंध्रा प्रदेश में दस फीसद
मुसलमान इन दो प्रदेशों की वजह से ही मुल्क भर की
पुलिस में मुस्लिम नुमाइंदगी का औसत तकरीबन छः फीसद
तक पहुंचता है। इस सूरतेहाल से ही अंदाजा लगाया जा
सकता है कि पूरे मुल्क में मुसलमानों के साथ ज्यादतियां
क्यों होती हैं और मुल्क में मुस्लिम आबादी के तनासुब
(अनुपात) के मुकाबले तकरीबन चार गुना मुसलमान जेलों
में क्यों सड़ाए जा रहे हैं ?
दिल्ली में कमिश्नर से सिपाही तक पुलिस वालों की कुल
तादाद तिरासी हजार है। इनमें मुसलमानों की तादाद
एक हजार पांच सौ इक्कीस (1521) ही है। जो तकरीबन
1.8 फीसद होता है। यह तो माना जा सकता है कि
आईपीएस और पीपीएस के इम्तेहान में पास होकर
मुसलमान भले ही इन नौकरियों में ना पहुंच सकते हो
लेकिन सिपाही बनने लायक तो मुसलमानों मे एक बड़ी
तादाद मौजूद है। सिपाहियों में भी अगर मुसलमानों की
भर्ती नहीं होती तो इसका सीधा मतलब है कि पुलिस
में भर्ती के वक्त मुसलमानों के साथ नाइंसाफी और
बेईमानी की जाती है।
भारत सरकार का खुद का यह हाल है कि बरसों पहले
1978 से दिल्ली में पुलिस कमिश्नर सिस्टम नाफिज है।
आज तक कमिश्नर या स्पेशल कमिश्नर के
ओहदों तक किसी मुसलमान अफसर को नहीं पहुंचने दिया
गया। दिल्ली पुलिस सीधे मरकजी होम मिनिस्ट्री के
मातहत काम करती है। कांग्रेस की कयादत में बनी
यूपीए हुकूमतों के दौरान और उससे पहले कोई कांग्रेसी
लीडर होम मिनिस्टर ही रहा है। इसके बावजूद मुल्क के
किसी मुस्लिम आईपीएस अफसर को दिल्ली का पुलिस
चीफ नहीं बनाया गया, क्या इसके लिए भी
फिरकापरस्त ताकतें जिम्मेदार हैं या फिर #कांग्रेस ??

नोट:इन आकड़ों में कुछ कम ज़्यादा हो सकता है
तो मेहरबानी करके अपना दिमाग वहां ना लेजाकर
सवाल का ज़वाब देने की कोशिस करें। बेहतर होगा



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