झारखंड के जमशेदपुर में रविवार की शाम बेहद खास थी जब एक ही मंच को हर मकतब-ए-फिक्र के उलेमाओं ने साझा किया और देश में मुसलमानों के साथ हो रहे बर्बरता पर अपनी अपनी बातें रखते हुए एक शांतिपूर्ण महासभा का सफल आयोजन किया।
इस महासभा में तमाम मसलक के उलेमाओं समेत जमशेदपुर और इसके आसपास के लगभग 60 हजार से अधिक लोग गाँधी मैदान पहूंचे, जैसे मानो एक जन सैलाब उमड़ पड़ा था, सभी के हाथों में तिरंगा था, स्टेज भी राष्ट्र ध्वज की तरह सजी थी, गंगा जमुना संस्कृति को दर्शाते सड़कों के किनारे दुकानदार और बहुसंख्यकों की भीड़ भी काफी तादाद में थी, इसके बाद उलेमाओं की तकरीर शुरु हुई, जिनमें निम्न बातें कहीं गई।
- मुस्लिम युवाओं को आतंक से जोड़कर देखा जाता है। गोहत्या के आरोप में हमले हो रहे हैं। जो मुजरिम हैं उसे सूली पर चढ़ा दो, लेकिन हर मुसलमान को दाउद न समझा जाए।
- जंग-ए-आजादी में मुसलमानों ने भी कुर्बानी दी है। इस्लाम अमन का संदेश देता है, इसलिए किसी भी सूरतेहाल में युवा हिंसा की राह पर न जाएं। और सरकार हमें आतंकवाद की नजर से न देखें, हम अपने वतन के रखवाले हैं।
- मुसलमानों का डीएनए भारतीय मूल का है, चाहो तो इसे टेस्ट करा लें।
- हम हिंसा से परे कानुन को तरजीह दी है, हमें देश के न्याय प्रणाली पर विश्वास है, परंतु आए दिन मुसलमानों के प्रति दोहरी नीति इसकी विश्वसनीयता को खोखली कर रही है।
- आजादी में हमने बढकर बहाया है खुन, अधिकारों में कटौती मंजुर नहीं।
आज भले ही हम उलेमाओं को लाख बुरा-भला कह लें, लेकिन सच यही है की आज भी क़ौम की ख़िदमात जो वो लोग कर रहे हैं उसकी मिसाल नही मिलती, जमशेदपुर इसका जीता-जागता उदाहरण है,
इस महासभा ने उस वक्त सबका ध्यान आकर्षित किया जब तमाम मसलक के उलेमाओं समेत सभी लोगों ने मगरिब की नमाज़ एक ही मैदान में कंधे से कंधा मिलाकर पढ़ा, और मुल्क के अमन-ओ-सुकुन के लिए दुआएं माँगी , और फिर हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारों से पुरा मैदान गुंजने लगा।
बेशक यह एक सराहनीय प्रयास है कौम को फिरकापरस्ती से दुर एक सही राह दिखाने की, मोत्तहिद होकर अपने हुकुक के लिए आवाज़ बुलंद करने की, ये एक सदा है जो केवल जमशेदपुर तक सीमित नहीं रहनी चाहिये बल्कि इसकी गुँज देश के कोने-कोने तक पहुंचनी चाहिए ताकि हम मुसलमान एक हो जाएँ, इंशाअल्लाह उलेमाओं की यह मेहनत जरुर रंग लाएगी।
- अशरफ हुसैन
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