हज़रत उमर रदिअल्लाहू अन्हु का इंसाफ पढ़े और शेयर करें - Hakeem Danish

Sunday 4 February 2018

हज़रत उमर रदिअल्लाहू अन्हु का इंसाफ पढ़े और शेयर करें



#हज़रत_उमर_रजिअल्लाहो_अन्हो_का_इंसाफ

जबला बिन अल यहम गसानी, मुल्क शाम का मशहूर रईस बल्कि बादशाह था और मुसलमान हो गया काबा के तवाफ़ में उसकी चादर का एक कोना एक आदमी के पैर के नीचे आ गया जबला उसके मुंह पर थप्पड़ खींच कर मारा उसने भी बराबर जवाब दिया जबला गुस्से से बेताब हो गया और हजरत उमर रजिअल्लाहो  अनहो के पास आया हजरत उमर रजि अल्लाहो अनहो ने उसकी शिकायत सुन कर कहा तुमने जो कुछ किया उसकी सजा पाई उसको बहुत हैरानी हुई और कहा कि हम इस रुतबा के लोग हैं कि कोई हमारे आगे गुस्ताखी से पेश हो तो कत्ल का हकदार होता है
हजरत उमर रजि अल्लाहो  अन्हो ने फरमाया जाहिलियत में ऐसा ही था लेकिन इस्लाम ने पस्त वह बुलंद हो एक कर दिया अगर इस्लाम ऐसा मजहब है जिसमें शरीफ और रजील की कुछ तमीज नहीं तो मैं इस्लाम से बाज़ आता हूं
गर्ज वह छुपकर कुस्तुनतुनिया चला गया लेकिन हजरत उमर रजि अल्लाहो अन्हो ने उस की खातिर से कानून इंसाफ को बदलना गवारा नहीं किया
एक दफा मुल्क के ओहदेदारों को हज के जमाने में तलब किया और मजमा आम में खड़े होकर कहा कि जिसको इन लोगों से शिकायत हो पेश करें इस मजमा में उमरो बिन  आस गवर्नर मिश्र और बड़े-बड़े मर्तबा के हाकिम और अमाल मौजूद थे एक आदमी ने उठकर कहा कि फलां आमिल ने बेवजह मुझको 100 दूररे मारे हैं हजरत उमर रजि अल्लाहो अन्हो ने फरमाया उठ और अपना बदला ले उमरो बिन आस ने कहा अमीरुल मोमिनीन इस तरीके अमल से तमाम अमाल बेदिल हो जाएंगे हजरत उमर रजि अल्लाह ने फरमाया ताहम ऐसा जरूर होगा
 यह कहकर फिर उस शिकायतकर्ता की तरफ मुताख़ीब हुये कि तू अपना काम कर
आखिर उमरो बिन आस ने शिकायत करने वाले को इस बात पर राजी किया कि वह 200 दीनार ले ले और अपने दावा से बाज आ जाए

एक बार सरदारान ए कुरैश उन से मुलाक़ात को आये, इत्तेफाक से उन लोगों से पहले सोहैब रजिअल्लाहो अन्हो , बिलाल रजिअल्लाहो अन्हो, अम्मार रजिअल्लाहो अन्हो वगैरा भी मुलाकात के मुन्तजिर थे, अक्सर आजाद शुदा गुलाम थे और दुनियावी हैसियत से मामूली दर्जा के लोग समझे जाते थे हजरत उमर रजि अल्लाह हो अनहो ने पहले उन्हीं लोगों को बुलाया और कुरैश के सरदारों को बाहर बैठे रहने दिया अबू सुफियान जो जमाना जाहिलियत में तमाम कुरैश के सरदार थे उनको यह बात बहुत सख्त नागवार गुजरा और साथियों से मुखातिब हो कर कहा कि क्या खुदा की कुदरत है गुलामों को दरबार में जाने की इजाजत मिलती है और हम लोग बाहर बैठे इंतजार कर रहे हैं
अबू सुफियान की है हसरत अगरचे उन अकरान के मजाक के मुनासिब  थी
ताहम उनमें से कुछ इंसाफ पसंद भी थे एक ने कहा भाइयों सच यह है कि हमको उमर रज़िअल्लाहो अन्हो  की नहीं बल्कि अपनी शिकायत करनी चाहिए इस्लाम ने सबको एक आवाज से बुलाया लेकिन जो अपनी शामत से पीछे पहुंचे  वह आज भी पीछे रहने के हकदार हैं (किताब अल ख़राज पेज 66)

No comments:

Post a Comment