खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले #खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे की बता तेरी रज़ा क्या है - Hakeem Danish

Sunday 12 March 2017

खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले #खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे की बता तेरी रज़ा क्या है

..........शाहिद आज़मी को सलाम..............
इस 32 साला नौजवान की अल्प आयु भी उन्हें
न्याय के लिए संघर्ष करने से रोक नहीं पायी। 16 साल
की आयु में पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किये गए आज़मी 92 के
मुंबई दंगो में मुस्लिम नाम थे, जैसा की न्याय व्यवस्था में
होता रहा है मिडिल क्लास पिस जाता है और अमीरजादे
मक्खन में से छुरी की तरह निकल जाते है वही आज़मी के साथ
हुआ। खैर आज़मी ने हिम्मत नहीं हारी और आर्थर रोड जेल से
ही पोट़ा के थपेड़े सहते हुए पढ़ाई जारी रखी। जिस उम्र में
लोग 'हीर-रांझा' की कहानिया गढ़ते है, बॉलीवुड-
हॉलीवुड की माला जपते है, आज़मी मुंबई दंगो में गिरफ्तार
लोगो के लिए केस लड़ रहे थे।
शाहिद आज़मी के बारे में काफी दिनों से सुन
रहा था। आज मेने भी शाहिद आज़मी को जिंदा कर
दिया। तमाम बेगुनाहों की आखिरी आस बन चुके शाहिद
को 2010 में मौत के घाट उतार दिया गया था। 14 वर्ष
की उम्र में 1992 में.बाबरी मस्जि़द ढ़हाए जाने के दौरान
दंगा फैलाने के केस में गलत फंसाए जाने से क्षुब्द्ध शाहिद ने
पाकिस्तान जा कर.हथियार चलाने का प्रशिक्षण
भी लिया।
वहां से लौटने के बाद उन्हें एक बार फिर
सलाखों के पीछेे जाना पड़ता है। जेल में
ही उन्हें आगे पढ़ने की ललक जाग उठती है। जेल से निकलने के
बाद शाहिद वकील बनकर उनके जैसे तमाम
बेगुनाहों को न्याय
दिलाना उनका मकसद बन जाता है। दूसरों के हक के लिए लड़ते
लड़ते वह खुद से हार जाते है।
मात्र 33 वर्ष की उम्र में 11 फरवरी 2010.को उसके आॅफिस में
ही उसकी गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। वकील के
रूप में अपने छह साल के कैरियर में उसने 17
बेगुुनाहों को बरी कराया। जिनमें से अधिकतर.मुस्लिम युवक
थे। आज शाहिद पूरी दुनिया के सामने है भले ही वह हमारे
बीच न हो।
हकीकत यह है कि आज शाहिद का परिववार
उन पर बनी फिल्म नहीं देखना चाहता,
खासतौर पर उसकी अम्मी उसे दोबारा मरते
हुए नहीं देखना चाहती और शायद हम सब

खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले
#खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे की बता तेरी रज़ा क्या है

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