हाल ही में अमेरिकी इतिहासकार ऑडरी ट्रस्चरे ने औरंगजेब के ऊपर एक किताब " औरंगजेब- द मैन एंड द मिथ" लिखी है।
ट्रस्चरे लिखती हैं की ये सरासर झूठ है की औरंगजेब ने हिंदुओं से नफरत के वजह से हजारों मंदिरें तुड़वाई । अलबत्ता कुछ मंदिर तुड़वाई जिसमे धर्म के नाम पर गलत काम होते थे लेकिन बहुत से नए मंदिरों को जमीन और पैसे भी दिए। मुग़ल हुकूमत में सबसे जादा हिन्दू मनसबदार औरंगजेब के वक़्त में ही थे।औरंगजेब का इस तरह का इमेज अंग्रेजों ने बनाया था ताकि आसानी से फुट डालो और राज करो की निति से हुकूमत किया जा सके।
औरंगजेब ने 5 करोड़ लोगों पर 49 साल हुकूमत की। औरंगजेब के ही हुकूमत के वक़्त में मुगलिया सल्तनत इतनी फली फूली की देखते देखते पुरे उपमहाद्रीप पर मुग़ल हुकूमत हो गया। दुनिया के बाजारों में लगभग 26% हिस्सेदारी भारत की थी जो उस वक़्त पूरी दुनिया के जीडीपी में भारत के जीडीपी आधी (50%) के बराबर थी।
दारा शिकोह और औरंगजेब पर ट्रस्चरे लिखती हैं की औरंगजेब अपने चारों भाइयो में सबसे तेज और समझदार थे और अगर दारा शिकोह को राजगद्दी मिलती तो मुग़ल सल्तनत कभी उस मकाम तक नही पहुंचती जिस मकाम पर औरंगजेब ने पहुंचा दिया था। दारा शिकोह के शादी के बाद
शाहजहाँ ने दो हाथियों सुधाकर और सूरत सुंदर के बिच मुकाबला करवाया। ये मुग़लों के मनोरंजन का पसंदीदा साधन हुआ करता था। अचानक सुधाकर घोड़े पर सवार औरंगजेब के तरफ गुस्से में दौड़ा औरंगजेब ने उसके माथे पर भाले से वॉर किया लेकिन उसका गुस्सा कम होने के बजाय और बढ़ गया और वो औरंगजेब को घोड़े से गिरा दिया। मौजूद लोगों में भाई शुजा और राजा जय सिंह ने औरंगजेब की मदद की लेकिन दारा शिकोह देखता रहा और अपने जगह से हिला तक नही। सत्ता के लिए चल रहे झगड़े में दारा शिकोह को 1659 में उसके ही करीबी मलिक जीवन ने औरंगजेब से मुखबिरी करके गिरफ्तार करवा दिया। अजरंगजेब ने उसे और उसके 14 साल के लड़के शिफिर शिकोह को हाथी में बंधवाकर दिल्ली का चक्कर लगवाया। उस वक़्त भारत दौरे पर आये इटालियन इतिहासकार निकोलाई मानुचि ने अपने किताब " स्टोरी ऑफ़ मोगोर" में लिखा है की शिकोह के मौत के दिन शाहजहाँ ने उससे पूछा था की अगर सब उल्टा हो जाये और औरंगजेब की जगह तुम हो जाओ तो क्या करोगे??
शिकोह ने जवाब देते हुए कहा की उसके चार टुकड़े करवा के दिल्ली के चारो कोनों पर लटका दूंगा। बाद में औरंगजेब ने अपनी बेटी जबदातुन्निसा की शादी शिकोह के उसी लड़के शिफिर शिकोह से कर दी थी।
औरंगजेब को मक्का के शरीफ ने कभी बादशाह नही माना और हर बार औरंगजेब का तोहफा लेने से इंकार कर दिया। औरंगजेब 1679 में दिल्ली छोड़कर दक्षिण भारत चले गए और अपनी आखरी साँस तक कभी वापस नही आये। उनके चले जाने के बाद दिल्ली भुतहा शहर जैसा दिखने लगा और लाल किले के कमरों पर इतना धूल चढ़ गया था की उसे मेहमानों को दिखाने से परहेज किया जाने लगा।
दक्षिण भारत में रहकर औरंगजेब उत्तर भारत के आमों को बहुत याद किया करते थे और हमेशा फरमाइश किया करते थे की उत्तर भारत से उनके लिए आम भेजे जाएं । आमों का सुधारस और रसनाबिलास नाम औरंगजेब ने ही रखा हुआ है।
Thursday, 2 March 2017
औरंगजेब आलमगीर के कुछ अनछुए पहलू
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